Introduction to Ashtavakra Geeta a debate on non dual philosophy


अष्टावक्र गीता ज्ञान योग की सबसे महत्त्वपूर्ण पुस्तकों में से एक है जिसकी प्रशंसा श्री रामकृष्ण परमहंस और श्री रमण महर्षि ने भी की है। जैसे गीता में श्रीकृष्ण और अर्जुन का संवाद है वैसे ही अष्टावक्र गीता के श्रोता श्री जनक और वक्ता श्री अष्टावक्र जी हैं। गीता में कर्म, ज्ञान और भक्ति तीनों का वर्णन हुआ है पर अष्टावक्र गीता में केवल ज्ञान योग का ही विवेचन हुआ है।

Ashtavakra Gita is one of the most important books on path of knowledge, which is even praised by Shri Ramkrishna Paramahansa and Sri Raman Maharishi alike. Just as the Gita has the dialogue of Sri Krishna and Arjun, so in the same way, Ashtavakra Gita has Ashtavakra as the speaker and king Janaka as the listener. In the Gita, the three ways of enlightenment (action, knowledge and devotion) are described whereas in Ashtavakra gita, only the path of  knowledge is discussed.

अष्टावक्र के नाना ऋषि उद्दालक का छान्दोग्य उपनिषद् में एक ब्रह्मज्ञानी के रूप में उल्लेख किया गया है। वेदांत के सबसे महत्त्वपूर्ण महावाक्य तत्त्वमसि का उपदेश इनके नाना उद्दालक के द्वारा इनके मामा श्वेतकेतु को दिया गया है जो अष्टावक्र के समवयस्क हैं, अतः अष्टावक्र उपनिषद् कालीन ऋषि हैं।

The maternal grandfather of Ashtavakra, the sage Uddalaka has been mentioned as an enlightened man in Chhadogyya Upanishad. The most important mahavyakya (the final statement) in the philosophy of Vedanta, 'You are That", has been given by him to his son Shvetaketu. Shvetaketu is maternal uncle of Ashtavakra, therefore, Ashtavakra and was of same age. This proves that Ashtavakra was a sage of Upanishadic times.

वाल्मीकि रामायण के युद्धकाण्डमें अष्टावक्र ऋषि का बड़े आदर से उल्लेख हुआ है।रावण-वध के पश्चात्, देवराज इंद्र के साथ राजा दशरथ अपने प्रिय पुत्र श्रीराम से मिलने आते हैं, उस समय वे श्रीराम से कहते हैं–“हे महात्मा राम तुम्हारे जैसे सुपुत्र के द्वारा मैं वैसे ही बचा लिया गया हूँ जैसे कि धर्मात्मा कहोड ब्राह्मण अपने पुत्र अष्टावक्र के द्वारा।”

In Valmiki Ramayana, during the time of battle in Yuddha Kanda, sage Ashtavakra has been mentioned with great respect. After the killing of Ravana, King Dashrath along with the king of demi-gods Indra comes to meet his beloved son Rama, at that time he says to Rama,"O great Ram, I have been saved by you as righteous Kahoda Brahmin was saved by his son Ashtavakra."

महाभारत के वन पर्व में लोमश ऋषि युधिष्ठिर को अष्टावक्र की कथा सुनाते हैं।

Sage Lomash recites the story of Ashtavakra to Yudhishtira in the Mahabharata's Vana Parva.


Comments

  1. Ashtavakra Gita is one of the most important books on path of knowledge.
    वाल्मीकि रामायण के युद्धकाण्डमें अष्टावक्र ऋषि का बड़े आदर से उल्लेख हुआ है।रावण-वध के पश्चात्, देवराज इंद्र के साथ राजा दशरथ अपने प्रिय पुत्र श्रीराम से मिलने आते हैं, उस समय वे श्रीराम से कहते हैं–“हे महात्मा राम तुम्हारे जैसे सुपुत्र के द्वारा मैं वैसे ही बचा लिया गया हूँ जैसे कि धर्मात्मा कहोड ब्राह्मण अपने पुत्र अष्टावक्र के द्वारा।”

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  2. Here Ashtaavakra ji has put light on the non dualism philosophy. Undoubtedly body is not soul' as it is not stable and it is perishable. Soul is real and eternal

    It is also established that world is not real but it's observer soul is real.

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  3. Ashtavakra Greta is a great contribution to human society.

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  4. Ashtavakra Geeta is one of great ancient scriptures putting light on the non dualism philosophy which provides us the knowledge of the self. It is well established truth that ignorance is the root cause of entire miseries and when man knows that he is not body and pleasure and pain are subjects of mind and man is witness of this pleasure and pain, then he becomes liberated soul.
    एको विशुद्धबोधोऽहं इति निश्चयवह्निना।

    प्रज्वाल्याज्ञानगहनं वीतशोकः सुखी भव॥१-९॥

    मैं एक, विशुद्ध ज्ञान हूँ, इस निश्चय रूपी अग्नि से गहन अज्ञान वन को जला दें, इस प्रकार शोकरहित होकर सुखी हो जाएँ ॥

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